Saturday, November 27, 2010

कुछ रंग ये भी .....

वो छत पर बैठी हुई शाम का रंग
घुटनों को सीने से समेटी शरद की उदास अकेली शाम का रंग.
रंग उसके होठों पर छाई ख़ामोशी का भी और आँखों से झलकती मायूसी का भी

टूटे खपरैल से झांकती उषा की लकीर का रंग
रंग खपरैल का भी और साथ लगे सूखे बांस की सीढ़ी का भी

जर्जर दीवार पर लगी पुरानी तस्वीर का रंग
रंग फोटो फ्रेम का भी और दीवार से झरते चूने का भी

कबाड़ के ढेर में शामिल अलमारी के कोने में पड़ी,
हर दिन थोड़ा और सिलती हुई किताब के पन्नों का रंग
रंग किताब का भी और स्याह अक्षरों का भी

सब रंग मेरे अकेलेपन के .....

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