आज पंद्रह अगस्त है, उन्हें फिर वतन कि याद आई है.
अभी जायेंगे अपने बच्चे के लिए तिरंगा लेंगे;
एक छोटा सा तिरंगा इनकी कमीज पर भी सजा है.
वतन की याद आई क्योंकि छुट्टी थी आज दफ्तर में;
वरना इस शहर में वतन को याद कौन करता है.
टीवी पर देखेंगे दिल्ली में तिरंगा फहराया है किसी ने,
राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री परवाह कौन करता है.
ये वहीँ हैं जो चौक चौराहों पर कहते हैं-
"इस देश का कुछ नहीं हो सकता"
इनसे न कहना कि खड़े हों राष्ट्रगान कि धुन पर;
इन्हें राष्ट्र के प्रति कर्तव्य याद न दिलाना;
ये अकर्मण्यता को भय के आवरण से ढक लेते हैं.
आज छुट्टी का दिन है आराम करने दो इन्हें.
कल फिर पैसे की चूहादौड़ में जाना है इन्हें;
कल फिर शहर की भीड़ में खो जाना है इन्हें.