Friday, October 12, 2012

आकाश का वो हिस्सा मेरा है

३ साल से ऊपर हो गए मुझे कोटा से वापस आये पर कोटा मेरे मन से निकला नहीं.
कोटा एक ऐसी जगह है जहाँ से नफरत और प्यार साथ हो जाता है. धूप इतनी होती है की पसीने के साथ खून भी खींच ले! रातें दिन कब बनती है और दिन कब ढलता है इसका किसीको पता नहीं होता. रास्तों पर "maths", "physics", "chemistry" की "equations" हल की जाती हैं और रविवार को सड़कों पर जो काफिला होता है वो देखने लायक होता है. कोटा से प्यार पहली नजर में हो जाता है, फिर कुछ महीनों में यही प्यार ऐसी आदतें बना देता है जो आप कल्पनाओं में भी खुद को करते हुए नहीं देख पाता जैसे कई कई रातों तक लगातार जागना, घंटो तक एक ही सवाल से जूझना और फिल्में देखना. ऐसा हो ही नहीं सकता की कोई कोटा जाए और उससे फिल्में देखने का चस्का न लगे. आप के आदर्शों में कई नाम और जुड जाते हैं, आप अपने "faculty" को भगवान/शैतान का भेजा दूत मानते हो और ये भी एक साथ होता है. आप लाखों की भीड़ का हिस्सा बन जाते हो, फिर आप अपने आप को उस भीड़ से अलग करने की जद्दोजेहद में लग जाते हो. जो कामयाब होते हैं वो आइआईटी और एम्स में जाते है, बाकि अपने घरों को. ये कविता एक स्वार्थी दिल से निकली है, ये मेरा और मेरे जैसे हजारों लोग जो लाखों के भीड़ में खो गए उनका कहा-अनकहा सच है.
       "सीमायें मेरे सपनों की तुमने कब से तय कर दीं,
         मेरे पंखों की दिशाएं तुमने क्या से क्या कर दीं,
         जितने रंग थे मेरे वो छूपा ले गए, सिर्फ एक स्याही की कलम थमा दी,
        मैं लिखूंगा जो दिल चाहे, क्या लिखना है अब न बताओ मुझको
        मैं सीख लूँगा जब समय आएगा, यूँ वक्त-बेवक्त न सिखाओ मुझको.
        ये कैसी ऐनक से देखते हो दुनिया को, और वो भी मेरी दुनिया को.
        ये बचपन मेरा है, तुमसब बड़े लोग यूँ अधिकार न जमाओ इसपर.
        मैं लाऊंगा अपने रंग, और मोडूँगा अपने पंख जिधर जिद है उड़ने की मेरी.
       क्यूंकि, वो जो दिख रहा है न कोने में पड़ा, आकाश का वो हिस्सा मेरा है."

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