Sunday, February 17, 2013

शक्ति का संघर्ष I


मनुष्य की परिभाषा क्या है?अगर कोई अचानक से ये प्रश्न आपसे पूछ दे तो क्या उत्तर देंगे?
मैं कई अरसे से इसका उत्तर तलाश रहा हूँ और मेरे पास कोई सटीक परिभाषा नहीं है.
हाँ पर मैं एक बहुत नजदीकी विवरण पर पहुंचा हूँ.

मनुष्य वो है जो विचार कर सकता है. यानि वो सोच सकता है और उस सोच को संजो कर रख सकता है .
मनुष्य कल्पना कर सकता है, विकसित कर सकता है भाषाएँ, बना सकता है नियम और चुनाव कर सकता है. मनुष्य एक सामाजिक चेतना युक्त प्राणी है.


हजारों सालों के क्रमिक विकास और उसमें हुए संघर्ष के बाद ये शक्ति को मिली है. शक्ति चेतना की और चुनाव की.मेरा मानना ये है कि यही कुछ खूबियाँ हमे बाकि जीवों से अलग करती है.
शायद इसलिए अब मनुष्यों के लिए शक्ति दैहिक कम और मानसिक ज्यादा है. मनुष्यों ने कई बार इस शक्ति का दुरुपयोग भी किया है. इस शक्ति के नशे में हमने कई मौकों पर इतिहास बदला है, प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाये रखने के बजाय संसाधनों को नष्ट किया है.
पर जो सबसे भयावह नतीजा है वो है सामाजिक चेतना के साथ खिलवाड़. शक्ति चाहे मानसिक हो या शारीरिक , कामोद्दीपक का काम करती है.
पृथ्वी पर जबसे जीवन है तबसे संघर्ष चल रहा है और आज मनुष्य आपस में अधिकधिक शक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस संघर्ष ने मनुष्यों को बाँट रखा है. आज हर राष्ट्र का एक दूसरे से परस्पर विरोध है, यही राज्यों के बीच है, शहरों में है, गाँवों में है यहाँ तक की परिवार के सदस्यों में है. इस संघर्ष में हमारे स्वतंत्र चुनाव करने की शक्ति को प्रचिन्तित किया जाता है. सरल भाषा में - " शक्ति के संघर्ष में हमारे सर पर तलवार लटकी होती है समूह चुनने की" .
मैं ये मानता हूँ कि संसार की सभी समस्याएं शक्ति के संघर्ष से शुरू होती है और सामाजिक चुनाव से खत्म. लेकिन शक्ति के लिए संघर्ष निरंतर अनवरत चलता रहता है. यही मनुष्य का सत्य है. मनुष्य का जीवन शक्ति का संघर्ष है.

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