मैं उगते सूरज की राह तकते, सोया नहीं था रात भर
ऐ शाम तू कब आई पता ही नहीं चला
कल समय से कहकर आना, तेरे आने पर धीमे चले
बहुत जलता है वो मुझसे जब तू मेरे साथ होती है
मेरे कन्धों पर हाथ रखा, हौले से मेरी पीठ थपथपाई
ऐ शाम तू कब आई .....
पहले तो रात से छुपा कर चिट्ठियां छोड़ दिया करती थी
तेरी आखिरी चिठ्ठी कब आई पता ही नहीं चला
देख रात नाराज़ है मुझसे, तू मेरे लिए उससे बात कर
अरसों से मुझे नींद नहीं आई
ऐ शाम तू कब आई .......