Friday, October 22, 2010

झूठ

हर दिन की तरह आज भी जी कर लौटा हूँ.
हर आते जाते पल को पी कर लौटा हूँ.
बहुत कुछ देखा मैंने बहुत कुछ सुना मैंने
बहुत परखने के बाद ही कुछ चुना मैंने.
जैसे ये शब्द चुन कर मन के भाव उकेरना चाहता हूँ
क्यूंकि एक प्यारा झूठ बोल सच से जीतना चाहता हूँ.
क्यूंकि जो देखता हूँ रोज वो भाता नहीं है..
जो सच में सच है कोई बोल पाता नहीं है.
सब देखकर अनदेखा कर देते हैं... वो भी मेरे जैसे हैं..
झूठ सच में फर्क कर लेते हैं...वो भी तो मेरे जैसे हैं....
बहुत थक गया हूँ अब इस भागदौड़ से...
सच सोने नहीं देगा.. आज रात फिर अपने-आप से... झूठ बोलना पड़ेगा.

Thursday, October 7, 2010

अपने लिए ही सही ...

क्यूँ बांटने की बात करते हो?
क्यूँ सब तोड़ने पर आमादा हो?
क्यूँ सब जानकर अनजान बनते हो?
तुम्हे क्यों लगता है कि तुम अकेले हो?
कभी तो आँखें मिला कर बात करो,
कभी तो उस दिल की भी बात सुन लो.
माना कि तुमने ज़ख्म खाएं हैं बहुत से,
कभी तो उनके आंसुओं पर भी गौर करो,
कभी तो अपने दिल को टटोल के देखो,
वो धड़कता है आज भी, कहना चाहता है तुमसे,
अरे औरों पर न सही खुद पर तो रहम करो.
कुछ तो शर्म करो.

Followers