क्यूँ बांटने की बात करते हो?
क्यूँ सब तोड़ने पर आमादा हो?
क्यूँ सब जानकर अनजान बनते हो?
तुम्हे क्यों लगता है कि तुम अकेले हो?
कभी तो आँखें मिला कर बात करो,
कभी तो उस दिल की भी बात सुन लो.
माना कि तुमने ज़ख्म खाएं हैं बहुत से,
कभी तो उनके आंसुओं पर भी गौर करो,
कभी तो अपने दिल को टटोल के देखो,
वो धड़कता है आज भी, कहना चाहता है तुमसे,
अरे औरों पर न सही खुद पर तो रहम करो.
कुछ तो शर्म करो.
bahut achha likhta h yaar tu.....
ReplyDeletethis is the best one among all
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