Friday, August 24, 2018

रात

देखो बेख़ौफ़ सा कौन है जा रहा
इस रात में इस पहर
बढ़ती सिकुड़ती परछाइयों के बीच

लम्बे लम्बे डग भरता हुआ
हथेलियों को कोट में डाले
सड़क पर बारिश की काइयों के बीच

शाम से बारिश हो रही धीमे धीमे
लेकिन बेफिक्र होकर भीग रहा
अपनी आती जाती अंगड़ाइयों के बीच

उसका गंतव्य क्या है, निश्चित ही
उसको आदत है ऐसे सफ़र की
अँधेरी रात की गहराइयों के बीच

मैं खिड़की से देख रहा हूँ,
स्ट्रीट लैंप की रौशनी में उसका चेहरा
रात में भी चमक रहा है.

Thursday, August 2, 2018

बेचैन

बेचैन हूँ मैं कौन हूँ,ये सोचकर
मैं कौन हूँ, बेचैन हूँ ये जानकर

कहाँ खड़ा हूँ, किधर मुड़ा हूँ,
अपनी यादें रोके अवाक् पड़ा हूँ 

बहुत तेज़ धड़कता है,
दिल हर बात पर अटकता है

क्या सच है क्या स्वप्न मेरे
और क्या मेरे मन का भ्रम?

मेरे प्रश्न नहीं रुकते
मेरा अहम् नहीं सुनता

बेचैन हूँ मैं कौन हूँ, ये जानकर
मैं कौन हूँ, बेचैन हूँ ये सोचकर.



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