सपनों को सिरहाने अधूरा छोड़ रखा है
बिस्तर पर सिलवटों में नींद की परछाईयाँ
सुबह उठने पर सपना टूट जाने का अफसोस
और थक हार कर भागमभाग वाली जिंदगी की धीमी शुरुआत
मन तो अभी भी बाल-अवस्था मे है
मस्तिष्क कहता है बड़े हो गए हो
किसकी बात मानूँ इसी कशमकश में दिन गुजर जाता है
सुबह से शाम तक हर पहर गिनता हुआ वापस लौट आता हूँ
उसी सिरहाने जहां सपनो को अधूरा छोड़ आया था सुबह
कि शायद इस रात में नींद में वो पूरे हो जाएंगे।