Monday, October 15, 2018

सपनों को अधूरा छोड़ रखा है

सपनों को सिरहाने अधूरा छोड़ रखा है
बिस्तर पर सिलवटों में नींद की परछाईयाँ

सुबह उठने पर सपना टूट जाने का अफसोस
और थक हार कर भागमभाग वाली जिंदगी की धीमी शुरुआत

मन तो अभी भी बाल-अवस्था मे है
मस्तिष्क कहता है बड़े हो गए हो

किसकी बात मानूँ इसी कशमकश में दिन गुजर जाता है
सुबह से शाम तक हर पहर गिनता हुआ वापस लौट आता हूँ

उसी सिरहाने जहां सपनो को अधूरा छोड़ आया था सुबह
कि शायद इस रात में नींद में वो पूरे हो जाएंगे।

एक किताब तुम्हारी आँखों में

एक किताब तुम्हारी आँखों में

जब जब पलक झपकते हो
कुछ पृष्ठ पलट जाते हैं

अपनी कहानी कहने को
तुम्हारे होंठ थरथराते हैं

तुम अपने मन की यादों में
रहने चले जाते हो

कोई वो किताब पढ़ ले
इसलिए खुला छोड़ देते हो

अपनी आँखों मे यादों के पन्ने

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