Saturday, September 4, 2010

नजरें

कभी रोते हुए भी हँसती थी, आज हँसकर भी रो देती हैं;
जो हिम्मत से हर दर्द सहती थी, बड़ी कमज़ोर हो गयी हैं नजरें .

कभी जो सच से सराबोर थी , आज ये कितनी चोर हो गयी हैं नजरें ;
कब से उनकी राह तक रहीं थी , वो आये तो दूजी ओर हो गयी ये नजरें .

कभी मीठी बातों का पुलिंदा थी , न जाने कबसे शोर हो गयी हैं नजरें ;
कभी इधर तो कभी उधर थिरकती हैं , सूखे सावन में मोर हो गयी हैं नजरें .

देखती रहती हैं उनको खामोशी से , के उनके जैसी हो गयी हैं मेरी नजरें ;
चाहकर की भी उनकी नज़रों से मिल न पायीं , नदिया के दो छोर हो गयी हैं नजरें .

उनकी याद में बरसने लगती हैं , काले बादल सी घन-घोर हो गयी हैं नजरें ;
मुझको किसी बंधन में बढ़ रखा है, रेशम की जैसे डोर हो गयी हैं नज़रें .

अधखुली सी अलसाई सी, बिना सूरज की भोर हो गयी हैं नज़रें,
बड़ी कमज़ोर हो गयी हैं नजरें , ये कैसी चोर हो गयी हैं नजरें !

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