हर दिन की तरह आज भी जी कर लौटा हूँ.
हर आते जाते पल को पी कर लौटा हूँ.
बहुत कुछ देखा मैंने बहुत कुछ सुना मैंने
बहुत परखने के बाद ही कुछ चुना मैंने.
जैसे ये शब्द चुन कर मन के भाव उकेरना चाहता हूँ
क्यूंकि एक प्यारा झूठ बोल सच से जीतना चाहता हूँ.
क्यूंकि जो देखता हूँ रोज वो भाता नहीं है..
जो सच में सच है कोई बोल पाता नहीं है.
सब देखकर अनदेखा कर देते हैं... वो भी मेरे जैसे हैं..
झूठ सच में फर्क कर लेते हैं...वो भी तो मेरे जैसे हैं....
बहुत थक गया हूँ अब इस भागदौड़ से...
सच सोने नहीं देगा.. आज रात फिर अपने-आप से... झूठ बोलना पड़ेगा.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteTera ye jhut bhi sach hai..
ReplyDeletesochna bahut aasan hota hai par likhne ke liye ...
one need a lot of guts & confidence which is reflected in ur poems
Bas yaar tum likhte raho.....
vo bola m jhoot nhi bolta,
ReplyDeletemaine fir poochha kya nhi bolte?
vo bola,"jhoot"
ab tum hi batao vo kya nhi bolta???????
Left me speechless.
ReplyDelete