Wednesday, March 28, 2012

अब मेरे जाने का क्षण आया है

अभी रोक न मुझको, अभी है जाना
अभी  जलता देश है उसे बचाना
क्यूँ व्यर्थ मनोहर बातों में तुम डूबे हो
क्यूँ संसार के क्षद्मों में तुम झूमे हो
हैं स्वप्न ये सारे, क्यूँ पलकें मूँद के सो जाना
यदि आँख खुले, मेरे पीछे आ जाना

मैं भी था मूरख , बड़ी देर भीड़ में खड़ा रहा
भीतर भीषण थी आग लगी, ऊपर सूरज था तपा रहा
घनघोर घटा बनके अब, भूमंडल पर है छा जाना
अभी जलता देश है उसे बचाना

जगत में मेरा जीवन क्षणिक है, अपूर्ण है
जितना भी अब शेष है, उसे राष्ट्रहित में लगाना
अभी रोक न मुझको, अभी है जाना
अभी  जलता देश है उसे बचाना

कुछ अभिलाषाएं हैं, कि सत्य जो ढंके है आवरण में
मरने से पहले अपने सत्य धरातल पर चिन्हित कर जाना
कि बनके भागीरथ फिर पवन गंगा को लाना
इस जलती रक्तरंजित भूमि को जलमग्न कराना
अभी रोक न मुझको, अभी है जाना
अभी  जलता देश है उसे बचाना


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