Sunday, November 18, 2012

वो मेरा गाँव ये तेरा शहर

तुम मुझे अपने शहर की शाम दिखा रहे हो,
कभी मेरे गाँव आओ, मेरा सुनहरा सवेरा देखो

ये कृत्रिम चकाचौंध रातों की, फीकी लगती है, उनको 
जो सितारों के उजालों में सोते हैं

तुम्हारा बोतलों में बंद पानी, बनावटी लगता है,
मेरे गाँव में छोटी नदी है,
पानी बहुत मीठा है उसका.

सब डिब्बे में बंद बिकता यहां,
बेजान आतिशें बेरंग होली यहाँ,
यहाँ पहली बारिश की खुशबू नहीं आती .

हवा से ज्यादा तुमलोगों की बातों में जहर घुला है,
बंद कमरे की छत से अच्छा मेरा आकाश खुला है

बहुत डर लग रहा है मुझे आजकल,
ये तुम्हारा शहर दौड़ता ही आ रहा है मेरे गाँव की ओर.

2 comments:

  1. धन्यवाद भाई, बस थोड़ी बहुत "appreciation" मिलती रहे , इसीलिए तो लिखता हूँ.

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