कोई प्रश्न नहीं पूछा, कोई व्याख्या नहीं दी
इक तस्वीर दिखाई पनघट की
और छोड़ दिया
उफनते विचारों के बीच भंवर में
कोई दिशा निर्देश नहीं, कोई पतवार नहीं थी
बस नौकाओं की कतार हर कहीं
सो मोड़ दिया
नौका का रुख, कस के डोर कमर में
उस ओर जहाँ सब नौकाएं बढ़ी जा रही थी
सबको बस पहुँचने की जल्दी थी
लहरें आतुर थी
भीतर अपने हमें समाने के चक्कर में
एक द्वीप दिखा सागर में, नौकाएं सबकी
टकराईं, हमने भी तुमने भी
और तोड़ दिया
नौका को सपने सा, निहत्थे महा समर में
हम लड़ते रहे व्यर्थ उनके मनोरंजन के लिए
जिन्होंने तट पर बने महलों में
बैठ हमें पनघट का चित्र दिखाकर
और जलपरिओं की कथाएं सुनाकर
दिशाहीन बनाया
और छोड़ दिया
उफनते विचारों के बीच भंवर में.
चित्र wikipedia से लिया गया है, अगर ये आपकी अधिकारिक संपत्ति है तो मेसेज करें और मैं इसे हटा दूँगा.
ahan got a connection bro
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है। राह भले ही व्यक्ति खुद बनाता है मगर दिशा मिलनी जरूरी है।
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