Monday, August 26, 2013

दो पैरों में दो चप्पलें

बदरा छाई, बरसी गरज गरज कर
हम किताबें कमीज़ में छुपाये दौड़े

तन भीगा, सर को झांप झांप कर
हमने बाधा-धावकों के रिकॉर्ड तोड़े

ट्रक आया, पानी छपक छपक कर
हमे मिट्टी का रंग लगाता गया

और साइकिल सवार एक युवक, उस
ट्रक चालक को मीठे बोल सुनाता गया

सड़क खो चुकी थी छोटे तालाबों में, मेरा
हौसला कमर तक कीचड़ में समाता गया

आँखें आधी बंद पड़ी, भरी दोपहर
दो पल में काली रात सी हो गयी

पानी से पाँव बचाने के क्रम में
हमसे एक भारी गलती हो गयी

जिसको ठोस जमीन समझकर कूदें
उस रेत में पाँव खम्बे सा खड़ा हो गया

मेरी एक चप्पल उलझकर टूट गयी
मुझे देख हर मुखड़ा ठहाके लगा गया

तब से दोनो  पैरों में अलग अलग चप्पलें हैं
और लोग समझते हम कोई फैशन मॉडल हैं.

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