Saturday, November 27, 2010

कुछ रंग ये भी .....

वो छत पर बैठी हुई शाम का रंग
घुटनों को सीने से समेटी शरद की उदास अकेली शाम का रंग.
रंग उसके होठों पर छाई ख़ामोशी का भी और आँखों से झलकती मायूसी का भी

टूटे खपरैल से झांकती उषा की लकीर का रंग
रंग खपरैल का भी और साथ लगे सूखे बांस की सीढ़ी का भी

जर्जर दीवार पर लगी पुरानी तस्वीर का रंग
रंग फोटो फ्रेम का भी और दीवार से झरते चूने का भी

कबाड़ के ढेर में शामिल अलमारी के कोने में पड़ी,
हर दिन थोड़ा और सिलती हुई किताब के पन्नों का रंग
रंग किताब का भी और स्याह अक्षरों का भी

सब रंग मेरे अकेलेपन के .....

Friday, October 22, 2010

झूठ

हर दिन की तरह आज भी जी कर लौटा हूँ.
हर आते जाते पल को पी कर लौटा हूँ.
बहुत कुछ देखा मैंने बहुत कुछ सुना मैंने
बहुत परखने के बाद ही कुछ चुना मैंने.
जैसे ये शब्द चुन कर मन के भाव उकेरना चाहता हूँ
क्यूंकि एक प्यारा झूठ बोल सच से जीतना चाहता हूँ.
क्यूंकि जो देखता हूँ रोज वो भाता नहीं है..
जो सच में सच है कोई बोल पाता नहीं है.
सब देखकर अनदेखा कर देते हैं... वो भी मेरे जैसे हैं..
झूठ सच में फर्क कर लेते हैं...वो भी तो मेरे जैसे हैं....
बहुत थक गया हूँ अब इस भागदौड़ से...
सच सोने नहीं देगा.. आज रात फिर अपने-आप से... झूठ बोलना पड़ेगा.

Thursday, October 7, 2010

अपने लिए ही सही ...

क्यूँ बांटने की बात करते हो?
क्यूँ सब तोड़ने पर आमादा हो?
क्यूँ सब जानकर अनजान बनते हो?
तुम्हे क्यों लगता है कि तुम अकेले हो?
कभी तो आँखें मिला कर बात करो,
कभी तो उस दिल की भी बात सुन लो.
माना कि तुमने ज़ख्म खाएं हैं बहुत से,
कभी तो उनके आंसुओं पर भी गौर करो,
कभी तो अपने दिल को टटोल के देखो,
वो धड़कता है आज भी, कहना चाहता है तुमसे,
अरे औरों पर न सही खुद पर तो रहम करो.
कुछ तो शर्म करो.

Tuesday, September 7, 2010

वो

वो अलविदा कह के चल दिए , हमने भी फिर मिलने का जिक्र न किया ;
हर मोड़ पर दिख जाते हैं वो , किसी गैर की बाँहों में बाहें डाले .

अपनी हर आरजू हम दफन कर गए , उन्हें देखकर इशारा भी न किया ;
तड़प हमारी जानते हैं वो, हमारे आंसुओं से भर चुके हैं प्याले.

हर पल हम जिसके साथ जिए, वो उनकी छनकती पायल सी आवाज़ थी,
हँसके हमें जलाते हैं वो, संभालता नहीं अब ये दर्द संभाले.

जिसे देखकर हम उठा करते थे, उनके रोशन चेहरे की लाली थी,
सपने में अब भी आते हैं वो, हमारा ये सपना न कोई चुराले .

शाम के धुंधलके में बादलों के बीच छुप जाते हैं वो,
पेड़ों पर धुआं सा छाया है, सब ने घर की ओर है रुख किया;
हमने कागज़ पर आंसुओं की कुछ बूँदें गिरा डाली .

काली घनी रात सी अपनी रेशमी जुल्फों में हमे सुलाते थे वो ,
सुहाने पलों की यादों ने हमे ख़ुशी से सराबोर है किया;
और कलम उठाकर हमने अपने दिल की ये कहानी लिख डाली.

मेरी आँखों में मेरी साँसों में मेरी धड़कन में बसते हैं वो,
ठंडी हवन के झोंके ने उनकी खुशबू को यहाँ ला दिया;
सीने से लगाके उनकी तस्वीर, हमने भी आँखें मूँद डालीं

रोज़ की तरह आज भी सपनों में हमसे मिलने आएंगे वो,
रात गहरी है अँधेरी है, सन्नाटे ने कैसा शोर है किया;
वो सामने खड़े हैं दरवाजे पर की हम आयें और उनको गले लगालें.

Monday, September 6, 2010

एक लड़की

आज वो एक ढलती हुई शाम है,
कल तक जो पहले सूरज की रौशनी थी,
आज वो एक भुला हुआ नाम है,
कल तक जो हर जुबां की रागिनी थी.

उसने देखें हैं कई अधूरे कुछ पूरे स्वप्न,
फिर किसे तलाशती हैं उसकी आँखें,
न जाने कबसे कड़ी है चौखट पे,
किसका आलिंगन चाहती है उसकी बाहें.

वो तड़पती है सिसकती है, झुर्रियों में मुस्कान छुपाये,
वो रोती है बिलखती है, मृत आकांक्षाएं दबाये.

पिता की लाडली थी वह, माँ की आँखों का तारा;
भैया की दुलारी थी वह, न था कोई उससे और प्यारा.

सखियों संग अटखेलियाँ करती थी वह,
न जाने कितनी अभिलाषाएं लेकर
चल पड़ी अपने पिया के देश वह,
अपने सपनों से दूर होकर.

रख दीं उठाकर ताक पे अपनी सभी इच्छाएं,
कर दिया समर्पित उसने अपना तनमन नए जीवन में,
अभी तो जानी थी उसने नवयौवन की बातें,
कि गूँज उठी किलकारियां उसके घर आँगन में.

शिशु ही उसके जीवन का सार बन गया था,
उसका बच्चा अब उसका संसार बन गया था.
वो अपनी ओट में छिपाकर ममता उसपर उडेलती थी,
उसके नखरे पूरी करती वह उसका लाड बन गया था.

जाने कब उसके पति उससे दूर होने लगे,
अपने पुत्र में अपनी छवि तलाशने लगे,
बस नाम मात्र का बंधन रह गया था इनमे ,
कोई अनजानी कमी आ गयी थी इनके सम्बन्ध में,

वह खड़ी है चौखट पर आज छुट्टी का दिन है,
पति कहीं और पुत्र कहीं हैं मगन अपने जीवन में,
एक मुरझाये फूल सी वह सुगंध के बिन है,
याद कर रही कैसी लगती थी वह अपने यौवन में.

सब झूठा है सब निराधार उसका हर स्वप्न बेमानी है,
यहीं वो आज खड़ी सोच रही है;
कर्त्तव्य निभाना क्या गलत है क्या उसकी नादानी है,
एक लड़की आज पूछ रही है???

Saturday, September 4, 2010

नजरें

कभी रोते हुए भी हँसती थी, आज हँसकर भी रो देती हैं;
जो हिम्मत से हर दर्द सहती थी, बड़ी कमज़ोर हो गयी हैं नजरें .

कभी जो सच से सराबोर थी , आज ये कितनी चोर हो गयी हैं नजरें ;
कब से उनकी राह तक रहीं थी , वो आये तो दूजी ओर हो गयी ये नजरें .

कभी मीठी बातों का पुलिंदा थी , न जाने कबसे शोर हो गयी हैं नजरें ;
कभी इधर तो कभी उधर थिरकती हैं , सूखे सावन में मोर हो गयी हैं नजरें .

देखती रहती हैं उनको खामोशी से , के उनके जैसी हो गयी हैं मेरी नजरें ;
चाहकर की भी उनकी नज़रों से मिल न पायीं , नदिया के दो छोर हो गयी हैं नजरें .

उनकी याद में बरसने लगती हैं , काले बादल सी घन-घोर हो गयी हैं नजरें ;
मुझको किसी बंधन में बढ़ रखा है, रेशम की जैसे डोर हो गयी हैं नज़रें .

अधखुली सी अलसाई सी, बिना सूरज की भोर हो गयी हैं नज़रें,
बड़ी कमज़ोर हो गयी हैं नजरें , ये कैसी चोर हो गयी हैं नजरें !

कुछ पहले की बातें

मैंने कई अन्य कवितायेँ भी लिखी हैं, उन्हें मैं जल्द से जल्द यहाँ पोस्ट करने की कोशिश करूँगा. आशा है आप लोगों को मेरी रचनाएँ पसंद आएँगी. मैं हिंदी में ही लिखता हूँ क्यूंकि जो अपनापन है इसमें वो किसी अन्य भाषा में नहीं हो सकता. हिंदी-प्रेमिओं से आग्रह है की मुझे प्रेरित और प्रोत्साहित करते रहें.
आपका अपना,
शुभम शुभ्र .

चलो सुबह जागकर के देखें

आज जब सवेरे उठा था मैं ,
कुछ अलग सा महसूस हो रहा था,
खिड़की खोल कर झाँका मैं,
देखा सारा जहां अभी सो रहा था .
सोचा चलो कुछ देर टहल आयें,
शायद इस सुहानी पहर में दिल भी थोड़ा बहल जाए.
अंगड़ाई ली फिर आँखें मलीं,
हथेलिओं को रगड़कर चला,
आँखें फिर भी अलसाईं थीं,
इसलिए थोड़ा संभलकर चला.
सब कुछ तो पहले जैसा था,
मुझे जाने क्यूँ नया लग रहा था,
शायद कई दिनों बाद मैं,
इतनी सुबह जग रहा था .
सूरज तो पहले जैसा था,
पर रौशनी अलग सी थी,
रास्ते पहले जैसे थे,
पर मंजिलें अलग सी थी.
दिल भी पहले जैसा था,
अरमान अलग से थे,
शब्द पहले जैसे थे,
पर दास्ताँ अलग सी थी.
सुहानी सुबह की हर एक चीज पहले जैसे थी,
जो कुछ भी नया था सब मुझसे जुड़ा था.
मुझमें ही कुछ नया था,
शायद कोई नयी धुन, कोई नया गीत,
कुछ कर दिखाने का जज्बा जो लग रहा था अपना.
आज खुद के साथ वक़्त गुज़ारा मैंने,
खोये हुए सपनों को पाया दुबारा मैंने.
अब हर रात सोने से पहले खुद से कहता हूँ- चलो कल सुबह जागकर देखें.......

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