आज वो एक ढलती हुई शाम है,
कल तक जो पहले सूरज की रौशनी थी,
आज वो एक भुला हुआ नाम है,
कल तक जो हर जुबां की रागिनी थी.
उसने देखें हैं कई अधूरे कुछ पूरे स्वप्न,
फिर किसे तलाशती हैं उसकी आँखें,
न जाने कबसे कड़ी है चौखट पे,
किसका आलिंगन चाहती है उसकी बाहें.
वो तड़पती है सिसकती है, झुर्रियों में मुस्कान छुपाये,
वो रोती है बिलखती है, मृत आकांक्षाएं दबाये.
पिता की लाडली थी वह, माँ की आँखों का तारा;
भैया की दुलारी थी वह, न था कोई उससे और प्यारा.
सखियों संग अटखेलियाँ करती थी वह,
न जाने कितनी अभिलाषाएं लेकर
चल पड़ी अपने पिया के देश वह,
अपने सपनों से दूर होकर.
रख दीं उठाकर ताक पे अपनी सभी इच्छाएं,
कर दिया समर्पित उसने अपना तनमन नए जीवन में,
अभी तो जानी थी उसने नवयौवन की बातें,
कि गूँज उठी किलकारियां उसके घर आँगन में.
शिशु ही उसके जीवन का सार बन गया था,
उसका बच्चा अब उसका संसार बन गया था.
वो अपनी ओट में छिपाकर ममता उसपर उडेलती थी,
उसके नखरे पूरी करती वह उसका लाड बन गया था.
जाने कब उसके पति उससे दूर होने लगे,
अपने पुत्र में अपनी छवि तलाशने लगे,
बस नाम मात्र का बंधन रह गया था इनमे ,
कोई अनजानी कमी आ गयी थी इनके सम्बन्ध में,
वह खड़ी है चौखट पर आज छुट्टी का दिन है,
पति कहीं और पुत्र कहीं हैं मगन अपने जीवन में,
एक मुरझाये फूल सी वह सुगंध के बिन है,
याद कर रही कैसी लगती थी वह अपने यौवन में.
सब झूठा है सब निराधार उसका हर स्वप्न बेमानी है,
यहीं वो आज खड़ी सोच रही है;
कर्त्तव्य निभाना क्या गलत है क्या उसकी नादानी है,
एक लड़की आज पूछ रही है???
bhavnaon ko khubsurti se shabdo mei dhali gayi ye rachna sach much dil ko chhune wali hai!bahut badhiya...likhte raho!
ReplyDeletesorry for the real lat reply....and thank you. achcha tumne bhi likhna band kar rkha h , kyun yaar, keep writing.
Deletehad hi kardi, reality likhi h ....... sochte to sabhi h par sabdon me bandhna ek kla h or tere me koot koot kr bhri h
ReplyDeleteBhut nazakat se lika hai
ReplyDeletepadh ke maza aa gaya.....
u r a real treasure
keep on writing....
thank you sir, sorry for the late reply was inactive on blogger for a long time.
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