जारी ..
अपने इस लेख के माध्यम से मैं शक्ति के संघर्ष को विस्तार से परिभाषित करने का प्रयास कर रहा हूँ. मैं स्वयं इस खोज में लगा हूँ कि आखिर शक्ति के आज के इस विश्वस्तरीय संघर्ष में सबसे अहम भूमिका किसकी है?
क्या वो धर्म की है, या जाति की, या भाषा की, या राष्ट्रवाद की, या लिंग की, या फिर पैसे की?
क्या ये अपना वर्चस्व स्थापित करने की लड़ाई है?
या फिर ये सिर्फ अपना अस्तित्व बरक़रार रखने का संघर्ष है?
हमारा ईश्वर तुम्हारे ईश्वर से बड़ा है.
तुम्हारा ये लिबास हमसे मेल नहीं खाता,
तुम्हारी भाषा हमें समझ नहीं आती,
तुम्हारा रंग चेहरे का हमे रास नहीं आता,
तुम्हारे घर की छत इतनी ऊँची क्यूँ,
तुम्हारा खान पान भी हमे नहीं भाता
तुम हमसे भिन्न हो, तुम्हे इसका दंड मिलेगा
क्यूँकि तुम ठहरे बीस हम सहस्त्र हैं खड़े
तुम्हारा सत्य नगण्य है हमारे सत्य के समक्ष
इसलिए हम सही हैं और तुम गलत.
हमे चुना गया है तुम्हे सही राह दिखाने को
क्यूंकि हमारा ईश्वर तुम्हारे ईश्वर से बड़ा है.
इतिहास के पन्नों में अंकित है कि मानव सभ्यता पिछले ८००० वर्षों के दौरान, सिर्फ ३०० वर्षों में शांति के साथ रही है अन्यथा परस्पर विवाद और युद्ध होते आ रहे हैं. धर्म ने शक्ति के संघर्ष में आग में घी की भूमिका निभाई है. ये सिर्फ हमारा एक सुखद भ्रम है कि ईश्वर और धर्म मनुष्य के जीवन में सुख और शांति प्रदान करते हैं.
धर्म की चर्चा को मैं यहाँ एक विराम दे रहा हूँ.
धर्म की चर्चा को मैं यहाँ एक विराम दे रहा हूँ.
समाप्त