Wednesday, March 20, 2013

शक्ति का संघर्ष (II) - धर्म

जारी ....
धर्म की उत्पत्ति, विकास और प्रभाव 

पिछली कड़ी में मैंने ये बताने कि कोशिश की थी कि कैसे धर्म शक्ति हासिल करने और लोगों पर शासन करने का एक माध्यम है. लेकिन अगर मैं सिर्फ यही कहने तक सीमित रह जाऊं कि धर्म सिर्फ शक्ति अर्जित करने का माध्यम था और कुछ नहीं तो मैं आपको सारे तथ्य नहीं बता पाऊंगा.
प्रकृति के संसाधन हर किसी को बराबर भाग में नहीं मिलते. संसार की हर प्राचीन सभ्यता एक दूसरे से विषम परिस्तिथिओं में विकसित हुईं हैं. इसीलिए उनके ईश्वर और धार्मिक ग्रन्थ भिन्न हैं. पर एक मूलभूत विचार जो हर धार्मिक ग्रन्थ और हर नयी पुरानी सभ्यता इतिहास में साफ़ साफ़ अंकित है वो है प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाना और प्राकृतिक संसाधनों का सही इस्तेमाल करना. जब पृथ्वी पर सभ्यताओं के अंकुर फूट रहे थे तब मनुष्य का जीवन अव्यवस्थित और अराजक था. ऐसे में मानव समाज को, जो विश्व की महान नदियों और समुद्र के किनारे फल फूल रहा था, दिशा और नियम की आवश्यकता थी.
यही वो महत्त्वपूर्ण समय है जब धर्म ने मनुष्य को प्रकृति से जोड़ा और प्राकृतिक संसाधनों का आदर करने के लिए कई धर्मों ने उन्हें ईश्वरीय रूप दिया. इन नियमों को मानने या न मानने पर मनुष्य के पास पुरस्कार या दंड के ही विकल्प थे.
इसके अलावा हर धर्म के ऋषिओं, पैगम्बरों और गुरुओं ने प्रकृति के नियमों को समझने और समझाने का भी प्रयत्न किया. ऋतुओं के चक्र का उल्लेख हुआ , पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा और प्रमुख ग्रहों के प्रावेदन और उसके कथित प्रभावों का भी अध्ययन किया गया.
धर्म ने समाज में नैतिकता प्रयुक्त की और सही गलत में अंतर बताने के लिए एक शक्तिशाली , अपरिमित और निष्पक्ष ईश्वर स्थापित किया. ये सभ्यताओं का स्वर्णिम समय था.

पर शक्ति किसी को भी भ्रष्ट कर सकती है चाहे वो धर्म हो या मनुष्य. और अपने शक्ति के अहंकार में धर्म के प्रचारकों ने अपनी त्रुटियाँ देखने से इनकार कर दिया. विज्ञान पढ़ने और पढाने वालों को कैद किया गया, यंत्रणा दी गयी या हत्या कर दी गयी. धर्म में संशोधन और विकास की कोई गुंजाइश नहीं रखी गयी.
धर्म ने पुरुष और स्त्री में भी भेदभाव किया और लगभग सभी प्रमुख धर्मों ने स्त्री को अधीनस्थ बताया. (नारी-शक्ति के ऊपर विस्तार से चर्चा अगले भाग में करूँगा.)
जब कोई भी वस्तु शिथिल हो जाती है तो वह निष्क्रिय होने लगती है. इसलिए मेरे अनुसार आज संसार के सभी प्राचीन धर्म लगभग निष्क्रिय हो गए हैं और वर्तमान में ये नकारात्मक बल का ही काम कर रहे हैं. शक्ति के संघर्ष में "धर्म", "अर्थ" (मुद्रा) और "राज्य" (state/administration) के सामने फीका पड़ने लगा है. लेकिन आज भी "धर्म" मनुष्य के जीवन का और हमारे समाज की व्यवस्था में एक  महत्त्वपूर्ण अंग है.
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...क्रमशः

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