ईश्वर और धर्म की उत्पत्ति .
ये एक बहुत विस्तार से गूंथी हुई भ्रान्ति है. इस भ्रम के इर्द गिर्द एक मायाजाल बुना गया कहानियों का. ये कथाएं पुरस्कार के प्रलोभन और सजा के भय पर आधारित हैं. दरअसल किसी भी भीड़ का दिमाग बहुत सरल होता है. भीड़ का मष्तिष्क नवजात शिशु के जैसा होता है. उसपर नियंत्रण सिर्फ दो ही तरीकों से किया जा सकता है.
१. पुरस्कार के लोभ दिखाकर
२. सजा का डर स्थापित कर के.
हर सभ्यता अपने शुरूआती चरणों में एक अबोध बालक की भांति अनभिज्ञ और अकृषित होती है. ये समय उस सभ्यता को दिशा प्रदान करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है. इसी समय अपना नियंत्रण स्थापित करने और शक्ति में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने के लिए कुछ पूर्वदर्शी मनुष्यों ने धर्म और ईश्वर का निर्माण किया.
"आप मुझे सिर्फ १०० नवजातों का समूह दे और मैं आपको एक नया धर्म स्थापित करके दिखा दूँगा. "
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क्रमशः
मैंने पहले अध्याय में लिखा था कि शक्ति का संघर्ष जीवन की शुरुआत से ही चल रहा है. इस बार मैं धर्म की चर्चा करूँगा. धर्म बहुत संवेदनशील विषय है इसलिए सभी पाठकों से आग्रह है कि ये लेख पढते वक्त अपना धर्म ग्रंथों में ही रहने दे.
संसार के सभी धर्म ये दावा करते हैं कि वो एक महान, सर्वशक्तिशाली ईश्वर की पूजा करते हैं. एक ऐसा ईश्वर जिसने इस श्रृष्टि का निर्माण किया और जो इस सृष्टि और संपूर्ण जीवन का विनाश भी कर सकता है. सभी धर्मग्रन्थ ये कहते हैं कि ईश्वर से मनुष्य की उत्पत्ति हुई है.
पर ये कथन कि ईश्वर ने मनुष्य को बनाया मुझे हास्यास्पद और भयावह लगता है क्यूंकि मैं ये समझता हूँ कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना नहीं की, बल्कि मनुष्य ने ईश्वर नामक भ्रम की रचना की. एक भ्रम जो फैलाया गया अनुभवहीन मनुष्यों में और जो प्रसारित किया गया एक दिशाहीन भीड़ पर अंकुश रखने के लिए. एक असत्य जिसे इतना बड़ा बना दिया गया कि कोई भी सत्य उसे चुनौती नहीं दे सके.ये एक बहुत विस्तार से गूंथी हुई भ्रान्ति है. इस भ्रम के इर्द गिर्द एक मायाजाल बुना गया कहानियों का. ये कथाएं पुरस्कार के प्रलोभन और सजा के भय पर आधारित हैं. दरअसल किसी भी भीड़ का दिमाग बहुत सरल होता है. भीड़ का मष्तिष्क नवजात शिशु के जैसा होता है. उसपर नियंत्रण सिर्फ दो ही तरीकों से किया जा सकता है.
१. पुरस्कार के लोभ दिखाकर
२. सजा का डर स्थापित कर के.
हर सभ्यता अपने शुरूआती चरणों में एक अबोध बालक की भांति अनभिज्ञ और अकृषित होती है. ये समय उस सभ्यता को दिशा प्रदान करने के लिए सबसे उपयुक्त होता है. इसी समय अपना नियंत्रण स्थापित करने और शक्ति में अपना हिस्सा सुनिश्चित करने के लिए कुछ पूर्वदर्शी मनुष्यों ने धर्म और ईश्वर का निर्माण किया.
"आप मुझे सिर्फ १०० नवजातों का समूह दे और मैं आपको एक नया धर्म स्थापित करके दिखा दूँगा. "
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क्रमशः
mai jyada gahrai me nahi jaunga but one thing that i want to say that ..koi to hai..kuchh to hai jo is sansaar ko,logo ko hum sabko jore huye hai ab tum isko Power kaho ya ishwar ..
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