कितने तारे देख गगन में
कितने तारे तोड़ के लाऊं
प्रियतम मुझसे रूसे बैठी
क्या करके मैं उसे मनाऊं
उसके रूप की करूँ प्रशंषा
या मन का मैं हाल सुनाऊं
उसकी भौंहे चढ़ी हुई हैं
कैसे उसका हिय पिघलाऊं
लेकर आया कांच की प्रतिमा
प्रतिमा तल पर बिखरी है
जाने कौन सी बात को लेकर
वो अब भी हम पर बिफरी है
मोती चुनके माला बुन लूँ
सीप अनोखे सारे चुन लूँ
कितना गहरा सागर ठहरा
कितने गोते कहो लगाऊं
मैं ठहरा निर्धन दरिद्र
सोने चांदी कहाँ से लाऊं
है जतन तो कोई मुझे बताओ
क्या करतब मैं कर दिखलाऊं
प्रियतम मुझसे रूसे बैठी
क्या करके मैं उसे मनाऊं
कितने तारे तोड़ के लाऊं
प्रियतम मुझसे रूसे बैठी
क्या करके मैं उसे मनाऊं
उसके रूप की करूँ प्रशंषा
या मन का मैं हाल सुनाऊं
उसकी भौंहे चढ़ी हुई हैं
कैसे उसका हिय पिघलाऊं
लेकर आया कांच की प्रतिमा
प्रतिमा तल पर बिखरी है
जाने कौन सी बात को लेकर
वो अब भी हम पर बिफरी है
मोती चुनके माला बुन लूँ
सीप अनोखे सारे चुन लूँ
कितना गहरा सागर ठहरा
कितने गोते कहो लगाऊं
मैं ठहरा निर्धन दरिद्र
सोने चांदी कहाँ से लाऊं
है जतन तो कोई मुझे बताओ
क्या करतब मैं कर दिखलाऊं
प्रियतम मुझसे रूसे बैठी
क्या करके मैं उसे मनाऊं
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