Monday, October 15, 2018

सपनों को अधूरा छोड़ रखा है

सपनों को सिरहाने अधूरा छोड़ रखा है
बिस्तर पर सिलवटों में नींद की परछाईयाँ

सुबह उठने पर सपना टूट जाने का अफसोस
और थक हार कर भागमभाग वाली जिंदगी की धीमी शुरुआत

मन तो अभी भी बाल-अवस्था मे है
मस्तिष्क कहता है बड़े हो गए हो

किसकी बात मानूँ इसी कशमकश में दिन गुजर जाता है
सुबह से शाम तक हर पहर गिनता हुआ वापस लौट आता हूँ

उसी सिरहाने जहां सपनो को अधूरा छोड़ आया था सुबह
कि शायद इस रात में नींद में वो पूरे हो जाएंगे।

एक किताब तुम्हारी आँखों में

एक किताब तुम्हारी आँखों में

जब जब पलक झपकते हो
कुछ पृष्ठ पलट जाते हैं

अपनी कहानी कहने को
तुम्हारे होंठ थरथराते हैं

तुम अपने मन की यादों में
रहने चले जाते हो

कोई वो किताब पढ़ ले
इसलिए खुला छोड़ देते हो

अपनी आँखों मे यादों के पन्ने

Friday, August 24, 2018

रात

देखो बेख़ौफ़ सा कौन है जा रहा
इस रात में इस पहर
बढ़ती सिकुड़ती परछाइयों के बीच

लम्बे लम्बे डग भरता हुआ
हथेलियों को कोट में डाले
सड़क पर बारिश की काइयों के बीच

शाम से बारिश हो रही धीमे धीमे
लेकिन बेफिक्र होकर भीग रहा
अपनी आती जाती अंगड़ाइयों के बीच

उसका गंतव्य क्या है, निश्चित ही
उसको आदत है ऐसे सफ़र की
अँधेरी रात की गहराइयों के बीच

मैं खिड़की से देख रहा हूँ,
स्ट्रीट लैंप की रौशनी में उसका चेहरा
रात में भी चमक रहा है.

Thursday, August 2, 2018

बेचैन

बेचैन हूँ मैं कौन हूँ,ये सोचकर
मैं कौन हूँ, बेचैन हूँ ये जानकर

कहाँ खड़ा हूँ, किधर मुड़ा हूँ,
अपनी यादें रोके अवाक् पड़ा हूँ 

बहुत तेज़ धड़कता है,
दिल हर बात पर अटकता है

क्या सच है क्या स्वप्न मेरे
और क्या मेरे मन का भ्रम?

मेरे प्रश्न नहीं रुकते
मेरा अहम् नहीं सुनता

बेचैन हूँ मैं कौन हूँ, ये जानकर
मैं कौन हूँ, बेचैन हूँ ये सोचकर.



Wednesday, April 4, 2018

मैं निशब्द हो गया

तुमसे करने को बातें इतनी सारी हैं
व्यंग्य है, अवसाद है, हंसी ठिठोली है
यादों का पूरा गुलदस्ता है

दुनिया सिमट जाती है मुट्ठी में,
और कल्पना उड़ान भरने लगती है
विचारों का पूरा बक्सा है

वाद-विवाद और पंक्तियाँ कविता की
सुनाने को गीत, बनाने को किस्से
मेरी इच्छाओं का बस्ता है

लेकिन जब तुम सामने होती हो
सारी बातें हवा हो जाती है, सिर्फ
तुम्हारा चेहरा दिखता है

कोई शब्द पर्याप्त नहीं लगता
क्यूंकि तुम्हे बयां करने को शब्द नहीं बने है
या शायद तुमने मुझे निशब्द कर दिया है

कहाँ जाता है ऐ दिल मेरे

अरे तेरी जरुररत है, क्यूँ भाग जाता है
अभी यहीं थम के बैठ, मेरे पास वक़्त बिता
कहाँ जाता है ऐ दिल मेरे?

मैं जिस पल में आँख मूँद सोचता हूँ नाम उसका
उस एक पल में तू क्यूँ भाग जाता है
कहाँ जाता है ऐ दिल मेरे

वर्तमान में, भविष्य में और भूतकाल में हो आता है
क्यूँ एक साथ हर समय में रहता है
कहाँ जाता है ऐ दिल मेरे

मैं पिंजरे में बंद पन्छी हूँ, मुझे मेरी सीमा पता है
पर तू उन्मुक्त पवन है, फिर भी मुझे छोड़
कहाँ जाता है ऐ दिल मेरे

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