देशहित में है निहित कुछ स्वार्थ मेरा
कुछ लोभ तुम्हारा भी हो जाए तो बात हो
देश को बचाने निकले हैं नौजवान
वो अपना घर बचा लें पहले तो बात हो
सब शास्त्र और शस्त्र त्याग दो अनुज
सम्पूर्ण श्वास से शंखनाद हो तो बात हो
होता है निश्चित हृदय कल्पित तुम्हारा
अपने संकल्प को विश्वास दो फिर बात हो
दो राहें नहीं हैं मिथ्या है मनुष्य के आकार
कहीं नहीं जाने वाला कोई सब साक्षात् हो
चीटीयों के वजन जितना मनुष्य है इसलिये
देवत्व का भ्रम देने वाला अहंकार समाप्त हो
फिर देशहित की बातें भी कर लेंगे